विशुद्ध स्वर्ण – गुरु तत्त्व

  श्रीकृष्ण अपने दिव्य नाम के कीर्तन द्वारा श्री-गौंराग महाप्रभु के रूप में उस भगवद्-प्रेम का वितरण करते हैं, जो स्वयं उनके दिव्य-नाम में अवतीर्ण है। यह  प्रेम  कर्म-निष्ठा, तपस्या, ध्यान-योग, अष्टांग-योग, वैराग्य और कर्म-त्याग द्वारा भी अप्राप्य है। अपितु यह एक अत्यंत गुह्य-तत्त्व...

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साधु की अहैतुकी कृपा और शुद्ध अभिलाषाएँ

  प्रिय पाठकों, श्री गुरु एवं श्री गौरांग की कृपा से हम हर एकादशी कुछ महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं का स्मरण तथा उन पर चिंतन करने का प्रयास करते हैं। आज के लेख में हम आध्यात्मिक इच्छाओं के विषय पर चर्चा करेंगे। यद्यपि हम साधना एवं भक्ति-क्षेत्र में प्रगति कर रहे हैं, तथापि यदि हम ध्यानपूर्वक आत्मनि...

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सरलता ही वैष्णवता है

  प्रिय पाठकगण, श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से हम पूर्ववर्ती आचार्यों की शिक्षाओं के आधार पर वैष्णव दर्शन के विभिन्न विषयों पर चर्चा कर रहे हैं। आज हम आध्यात्मिक जीवन के अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाशय ने 'सरलता' पर अत्यधिक बल दिया ...

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सहजिया और शुद्ध वैष्णव

  प्रिय पाठकगण, श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से हम अपने शुद्धिकरण हेतु विभिन्न विषयों पर चर्चा कर रहे हैं। इस लेख में हम एक सहजिया और एक शुद्ध-वैष्णव के मध्य अंतर समझने का प्रयास करेंगे। साधारणतया नवांगुतक भक्तों तथा सामान्य जनसमूह को एक शुद्ध-वैष्णव की उच्च स्थिति का कोई अनुमान न...

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दंभ

  प्रिय पाठकों, श्री श्री गुरु एवं गौरांग की कृपा से हम निजी शुद्धिकरण व आध्यात्मिक उन्नति हेतु विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा कर रहे हैं। आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे जो कि आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर सदैव अवरोध उत्पन्न करता है, और वह विषय है ‘दंभ’ अथवा ‘मिथ्या...

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कृपया मेरे हृदय को शुद्ध करें

  प्रिय पाठकगण, श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से हम आचार्यों द्वारा प्रदत्त महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं का श्रवण कर अपनी आध्यात्मिक चेतना विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस लेख में हम आदि गुरु ‘श्रीबलदेव’ की  महिमागान करने के इच्छुक हैं। श्रीकृष्ण की इच्छा से योगमाया न...

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प्रेम नाम माला

  प्रेम नाम माला तबे प्रभु श्रीवासेर गृहे निरंतर। रात्रे सङ्कीर्तन कैल एक संवत्सर।। “श्री चैतन्य महाप्रभु पुरे एक वर्ष तक हर रात्रि को श्रीवास ठाकुर के घर पर हरे कृष्ण मंत्र का सामूहिक कीर्तन नियमित रूप से चलाते रहे।” (चैतन्य-चरित्रामृता, आदि-लीला 17.34) कपाट दिया कीर्तन करे ...

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श्री गुरु - हमारे शाश्वत शुभचिंतक

  प्रिय पाठकगण, श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से हम परंपरा आचार्यों की शिक्षाओं का स्मरण व चिंतन कर रहे हैं। भक्त-भागवत से भक्ति विधि का श्रवण किए बिना तथा इसका अभ्यास किये बिना कोई भी भागवत-धर्म में प्रवेश नहीं कर सकता। श्रीमद्-भागवतम [११.३.२२] में भागवत धर्म सीखने के उपाय वर्णित ...

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दूसरों को कष्ट देना वैष्णव धर्म नहीं है। भाग -१

  प्रिय पाठकगण, श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से हम पूर्ववर्ती आचार्यों की विभिन्न शिक्षाओं का स्मरण कर रहे हैं। भक्ति-पथ बिल्कुल तलवार की तीक्ष्ण धार  के समान है। जो तलवार चलाता है केवल वही जानता है कि तलवार कितनी सावधानीपूर्वक चलानी होती है। अन्यथा वह तलवार चलाने वाले के लिए...

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गोवर्धन पूजा

  आज के पावन दिवस पर समस्त वैष्णवगण अन्नकूट महोत्सव का आयोजन करते हैं जिसमें वे हर्षोल्लास सहित गिरिराज गोवर्धन की आराधना करते हैं। गोवर्धन-पूजा हेतु सभी भक्तगण अनेक प्रकार के पकवान तथा भरपूर मात्रा में गिरि-गोवर्धन को अन्न का भोग अर्पित करते हैं। वृंदावन में सब भक्त इस अवसर पर हर्षोन्माद के...

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श्री अद्वैत आचार्य की हुंकार

  हर साल माघ मास की सप्तमी तिथि को, हम अद्वैत आचार्य प्रभु का आविर्भाव दिवस मनाते हैं। सर्वप्रथम, अद्वैत आचार्य प्रभु स्वयं प्रकट हुए, और फिर उन्होंने महाप्रभु के रूप में श्रीकृष्ण को अवतरित किया। अद्वैत आचार्य के आह्वान से ही श्रीकृष्ण (महाप्रभु) प्रकट हुए। अतः आज का दिन अत्यंत शुभ है। आज ह...

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गौरांग महाप्रभु का भाव

  एइ आज्ञा कइल यदि चैतन्य-मालाकार। परम आनंद पाइल वृक्ष-परिवार॥ [श्रीचैतन्य चरितामृत, आदि लीला ९.४७]   अनुवाद वृक्ष के वंशज (श्री चैतन्य महाप्रभु के भक्त) महाप्रभु से यह प्रत्यक्ष आदेश पाकर अत्यंत प्रसन्न थे।   तात्पर्य यह श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा है कि ५०० वर्ष पूर्व न...

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श्रीराम नवमी

  दशावतार स्त्रोत्र   प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम् विहितवहित्र चरित्रमखेदम् । केशव! धृत-मीनशरीर! जय जगदीश हरे ॥१॥ “हे जगदीश्वर! हे केशव! प्रलय के प्रचण्ड समुद्र में डूब रहे वेदों का उद्धार करने हेतु आप भीमकाय मीन का रूप धारण करके दिव्य नौका की भूमिका निभाते हैं। हे मत्स्यावता...

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श्री गदाधर पंडित का जीवन-चरित

  मंगलाचरण श्री श्रीमद गौर गोविन्द स्वामी महाराज द्वारा संकलित। वे श्रीचैतन्य चरित्रामृत पर प्रवचन देने से पूर्व सदैव निम्नलिखित श्लोकों का उच्चारण करते थे। ऊँ अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया । चक्षुर उन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम: ॥   “मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्...

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आपदाएं चक्षु दान देती हैं

  प्रिय पाठकगण, श्रीगुरु एवं श्रीगौरांग की महती कृपा से हम पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा प्रदत्त बृहद रसात्मक व तत्वपरायण शिक्षाओं का स्मरण कर रहे हैं। यद्यपि आध्यात्मिक विषयों पर व्याख्या करने के लिए मैं योग्य नहीं हूँ, फिर भी अपने एकमात्र सम्बल श्रीगुरु एवं श्रीगौरांग की अद्भुत अहैतुकी कृपा ...

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नृसिंह चतुर्दशी - भगवान श्रीनृसिंह देव का आविर्भाव दिवस

    दशावतार स्त्रोत्र (श्रील जयदेव गोस्वामी विरचित गीत गोविन्द से उद्धृत) प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदं, विहितवहित्रचरित्रमखेदम् । केशव धृतमीनशरीर, जय जगदीश हरे ॥१॥ हे केशव! हे ब्रह्मांड के स्वामी! हे भगवान हरि, जिन्होंने मछली का रूप धारण किया है! आपकी जय हो! वेदों को, जो प्रलय के अ...

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गुंडीचा मार्जन लीला का रहस्य

  आज के दिन श्रीमन महाप्रभु ने गुंडिचा मंदिर को स्वच्छ करने की लीला  अर्थात "गुंडीचा मार्जन" संपन्न किया, और कल रथ-यात्रा है। जब महाप्रभु पुरी में निवास करते थे, तो वे रथ यात्रा से पहले गुंडीचा मंदिर का बाहर और भीतर से मार्जन करते थे। वे कैसे मार्जन करते थे? वे ऐसा क्यों करते थे? उनका ...

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श्रीबलराम – मूल भक्तावतार

  मंगलाचरण:  नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥ “विजय के साधनस्वरूप इस श्रीमद् भागवत का पाठ करने (सुनने) के पूर्व पूर्व मनुष्य को चाहिए कि वह श्री भगवान नारायण को, नरोत्तम नरनारायण ऋषि को, विद्या की देवी माता सरस्वती को तथा ग्रंथकार श्...

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कृष्ण-कृपा-श्री-मूर्ति

  सपार्षद भगवद विरह जनित विलाप (श्रील नरोत्तम दास ठाकुर कृत प्रार्थना से)   जे अनिलो प्रेमधन करुणा प्रचुर हेनो प्रभु कोथा गेला आचार्य ठाकुर॥1॥ "जो दिव्य प्रेम का धन लेकर आये थे, और जो दया के भंडार थे, ऐसे अद्वैत आचार्य कहाँ चले गये?"   काहाँ मोर स्वरूप रूप काहाँ सनातन क...

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श्रील भक्तिविनोद ठाकुर महाराज का सन्देश

  कबे मुइ वैष्णव चिनिब हरि हरि  (श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कृत कल्याण कल्पतरु से)   कबे मुइ वैष्णव चिनिब हरि हरि। वैष्णव चरण, कल्याणेर खनि, मातिब हृदय धरि’॥1॥   वैष्णव-ठाकुर, अप्राकृत सदा, निर्दोष आनन्दमय। कृष्णनामे प्रीति, जड़े उदासिन, जीवेते दयार्द्र ह...

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